✨संघर्षों की भट्टी में तपकर निकली,जीवन की पाठशाला में सीखें अमिट सबक,
फौलादी है इरादे मगर करूणा भाव से लबरेज है हृदय ✨
✨ *हाथों की लकीरों के भरोसे पर नहीं,, फौलादी हौसले के दम पर अपनी कहानी बनाई है,,हार कर बैठ जाना सीखा ही नहीं, मंजिल मिलने तक मीरा को रुकना आता ही नहीं।।*
*सकारात्मक समाचार*
जिम्मेदारियों को समझने और निभाने का प्रशिक्षण किसी स्कूल, कालेज और कोचिंग सेंटर में नहीं मिलता है, इसके लिए हर इंसान को खुले दिल और दिमाग के साथ दुनियादारी की पाठशाला में प्रवेश लेना पड़ता है। अच्छाई, सच्चाई, संवेदनशीलता, करुणा और सेवाभाव की पहली सीख हर इंसान को उसके माता-पिता और घर के वातावरण से मिलती है।इस बात का जीवंत उदाहरण मीरा सिंह के रूप में आपके सामने है, जिन्होंने 13 वर्ष की कच्ची उम्र में अपने जीवन के हीरो और प्रथम गुरु (पिता) काशीनाथ सिंह को एक दुखद हादसे में खो देने के बावजूद हिम्मत नहीं हारी। मां केशर देवी सिंह के संरक्षण और मार्गदर्शन में तमाम चुनौतियों का सामना करते हुए नक्सल प्रभावित धनबाद जिले में स्कूली शिक्षा हासिल करने के बाद उच्च शिक्षा हासिल करने की तरफ मजबूत कदम बढ़ाए और मंजिल पर पहुंचकर ही दम लिया।
मीरा सिंह
आबकारी उप निरीक्षक, इंदौर, मध्यप्रदेश
✨ जन्मस्थान -धनबाद, तत्कालीन बिहार, वर्तमान झारखंड
✨जन्मतिथि -25 सितंबर 1980
✨शिक्षा-बीएससी आनर्स (फिजिक्स)
✨पिताजी-स्वर्गीय श्री काशीनाथ सिंह
✨माताजी-केशर देवी
✨भाई-2 भाई(एक बड़े और एक छोटे)
✨पति-आलोक कुमार शर्मा, अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक, मध्यप्रदेश पुलिस
✨पुत्री - आमी, पुत्र -अमय
✨पूर्व सेवा-जिला सांख्यिकी अधिकारी उत्तर प्रदेश सरकार (वर्ष 2015 से 2017)
✨वर्तमान सेवा- मध्य प्रदेश आबकारी विभाग में उप निरीक्षक वर्ष 2017 से कार्यरत , मुरैना, सतना के बाद अब इंदौर में तैनात
*शिक्षा की लगन ऐसी कि स्कूल-कालेज तक पहुंचने हर दिन तय की70 किलोमीटर की दूरी*
तब के संयुक्त बिहार में नक्सलवाद से प्रभावित धनबाद जिले में रहने वाली मीरा ने स्कूली शिक्षा राजकमल सरस्वती विद्या मंदिर से हासिल करने के बाद विनोबा भावे विश्वविद्यालय के अंतर्गत हजारीबाग में संचालित श्री श्री लक्ष्मी महिला महाविद्यालय बीएससी फिजिक्स आनर्स में ग्रेजुएशन की डिग्री प्राप्त की है,मीरा ने इसी विषय से पोस्ट ग्रेजुएशन की पढ़ाई भी शुरू कर दी थी मगर फाइनल ईयर में निजी कारणों से परीक्षा नहीं दे पाईं। शिक्षा के प्रति मीरा की ललक और लगन ऐसी थी कि प्रतिदिन ट्रेन और बस और पैदल वह 70 किलोमीटर का सफर खुशी-खुशी तय कर जाती थीं, जबकि 90 के दशक में धनबाद में आवागमन के इतने संसाधन भी उपलब्ध नहीं रहते थे,मगर मीरा ने कभी उफ् तक नहीं की।मीरा की शिक्षा के प्रति लगन और मेहनत देखकर स्कूल-कॉलेज के शिक्षक भी विशेष स्नेह रखकर मदद करते थे। यहां तक कि राजकमल सरस्वती स्कूल में शिक्षक रावेन्द्र सिंह ने मीरा के लोकल गार्जियन की जिम्मेदारी सहर्ष निभाई थी। स्कूल के शिक्षकों के गैर शैक्षणिक स्टाफ के लोग भी मीरा के सहज-सरल व्यवहार के चलते आवश्यकता पड़ने पर उनकी खुशी-खुशी मदद करते थे। मीरा आज भी अपने स्कूल प्रबंधन और साथ पढ़ने वालों के संपर्क में रहकर पुरानी यादें ताजा करती रहती हैं।
*यूपीएससी में इंटरव्यू राउंड तक पहुंची*
कालेज की पढ़ाई पूरी करने के बाद मीरा ने देश की सबसे प्रतिष्ठित शासकीय सेवा को लक्ष्य बनाकर दिल्ली की तरफ रुख किया, जहां आत्मनिर्भरता के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते हुए यूपीएससी की तैयारी जारी रखी। उन्होंने तब उपलब्ध 4 प्रयासों में से एक बार प्री इक्जाम की चुनौती पार कर इंटरव्यू राउंड तक भी पहुंचने में सफलता पाई मगर आखिरी बाधा पार नहीं कर पाईं।।इस बीच विकल्प के तौर पर मीरा सिंह ने उत्तर प्रदेश राज्य प्रशासनिक सेवा में शिरकत कर वर्ष 2015 में जिला सांख्यिकी अधिकारी बनने में सफलता अर्जित कर ली। प्रशिक्षण के बाद लगभग ढाई वर्ष तक यूपी के झांसी जिले में उन्होंने सेवाएं भी दीं।
*परिवार के लिए छोड़ी यूपी सरकार की नौकरी*
इसी बीच दिल्ली में प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी के साथ जीवन में आए मध्य-प्रदेश के ग्वालियर निवासी आलोक कुमार शर्मा के साथ परिवार की सहमति से विवाह बंधन में बंध गईं जो तब-तक मध्यप्रदेश पुलिस में उपपुलिस अधीक्षक बन चुके थे। विवाह के बाद मीरा ने यूपी सरकार की नौकरी से त्यागपत्र देकर खुद को पूरी तरह परिवार के लिए समर्पित कर दिया और एक प्यारी बेटी एवं एक बेटे को इस दुनिया में लाईं,मगर पारिवारिक जिम्मेदारियों के बावजूद आत्मनिर्भर बनने का जुनून कम नहीं होने दिया। मीरा ने बेटी और बेटे का पालन-पोषण करने के साथ मध्यप्रदेश लोकसेवा आयोग की परीक्षा के लिए आवेदन कर तैयारी जारी रखी और वर्ष 2017 में आबकारी उप निरीक्षक के पद पर सफलता हासिल कर ली।तब से लेकर अब तक मुरैना, सतना और इंदौर में कार्यरत रही हैं। वर्तमान समय पर वे इंदौर में ही पदस्थ हैंं।
*पिता से मिली जीव सेवा की प्रेरणा*
मीरा ने पारिवारिक और शासकीय सेवा की जिम्मेदारियों का बखूबी निर्वहन करने के साथ जीव मात्र की सेवा सदैव जारी रखी है। सेवा कार्य की प्रेरणा मीरा को अपने पिता और कोल इंडिया लिमिटेड में कार्यरत रहे काशीनाथ सिंह से मिली है,जो अपने जीवनकाल में हर किसी जरुरतमंद की तन-मन-धन से मदद करने में अग्रणी रहे। कोई बीमार हो, किसी गरीब परिवार के घर में कार्यक्रम के लिए सहयोग करने की बात आए,या कमजोर परिवारों के बच्चों की शिक्षा में सहायता करने का अवसर आया हो,वे कभी पीछे नहीं हटे। अपने सहयोगियों और अधीनस्थ कर्मचारियों की मदद करने में भी स्वर्गीय काशीनाथ सिंह अग्रणी रहे हैं। वर्ष 1993 में एक दुखद हादसे में मात्र 40 वर्ष की उम्र में दुनिया छोड़ने से पहले उन्होंने जिस तरह सेवा कार्य किए थे उनकी यादें आज भी परिवार समेत करीबियों के दिलों में ताज़ा हैं। मीरा के जीवन में अपने पिता की अमिट छाप नजर आती है,एक 13 साल की छोटी सी बालिका जिसके लिए पिता ही हीरो थे, उनके असमय जाने के बाद खुद को कमजोर नहीं पड़ने दिया, बल्कि खेलने कूदने की उम्र में खुद को परिपक्व बनाकर जीवनपथ के संघर्ष पर निकल पड़ी।
*मां के संघर्ष ने बनाया सशक्त*
पति को असमय नियति के क्रूर हाथों खो देने के बाद केशर देवी सिंह के खुद को चट्टान की तरह मजबूत बनाकर तीनो बच्चों को मां के साथ पिता का भी स्नेह प्रदान किया तो उनको शिक्षा की राह पर आगे बढ़ाते हुए सशक्त बनाया। उनके ही त्याग और संघर्ष के कारण आज सभी बच्चे अपने अपने जीवन में सफल होकर आगे बढ़ रहे हैं।तीन बच्चों में सबसे बड़े और सबसे छोटे बेटे आज कोल इंडिया लिमिटेड में कार्यरत हैं तो होनहार बेटी मीरा मध्यप्रदेश आबकारी विभाग में सेवारत हैं।
*दिव्यागों की परेशानी देख लिया सेवा का संकल्प*
मीरा बताती हैं कि बचपन में एक बार जब वह बस में यात्रा कर रही थीं तब एक बस स्टाप पर दिव्यागों को भिक्षा मांगते देखा जिनके पैर नहीं थे।उनका संघर्ष और कठिनाई देखकर मन द्रवित हो गया।तभी से हर जरूरतमंद,गरीब, कमजोर की अपने सामर्थ्य के अनुसार मदद करने का मीरा ने संकल्प लें लिया,जो आजतक जारी है। स्कूल-कॉलेज की पढ़ाई के दौरान बच्चों को फ्री में ट्युशन पढ़ाने से लेकर पीस और किताबों की मदद करने की बात रही हो मीरा ने कदम पीछे नहीं खींचे।
शासकीय सेवा में आने के बाद भी सेवा का सिलसिला जारी रहा ,फिर चाहे चित्रकूट में भिक्षुकों को भोजन कराना हो,वृद्धाश्रम में रहने वाले बुजुर्गों को आर्थिक और भावनात्मक सहयोग प्रदान करने की पहल हो,गरीब बस्ती के बच्चों को शैक्षणिक सामग्री, कपड़े और खाने-पीने की चीजें प्रदान करने से लेकर इंदौर के महाराजा यशवंतराव होलकर गवर्नमेंट हॉस्पिटल इंदौर में आने वाले आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के मरीजों और उनके परिजनों को खाना-पीना एवं ठंड में गर्म कपड़े लेने की बात हो, मीरा ने यथाशक्ति मदद पहुंचाई है। सड़क किनारे छोटी छोटी दुकान लगाकर दो वक्त की रोटी जुटाने की जद्दोजहद करने वालों की सहायता में भी मीरा पीछे नहीं रहतीं।वह गौसेवा भी उत्साह और खुशी से करती हैं।बेशक उनके प्रयास बहुत थोड़े स्तर पर रहें हैं मगर बूंद-बूंद से ही घड़ा भरने की दिशा में एक बेशकीमती बूंद के समान तो हैं। इसी तरह और भी लोग आगे आएं तो कोई जरूरतमंद परेशान नहीं रहेगा और समाज में समानता,सद्भाव एवं सहयोग की भावना सशक्त होगी। अपने सेवा कार्यों में वे दोनों बच्चों को भी साथ ले जाती हैं और उन्हें मानव जीवन के मूल्यों की शिक्षा प्रदान करती हैं। मां के प्रयासों से बच्चे भी खुशी खुशी भी उनके साथ शामिल होते हैं।
✅ मीरा का मानना है कि हर इंसान समान होता है,कोई छोटा-बड़ा, अमीर-गरीब शक्तिशाली-कमजोर नहीं होता है।सब परिस्थितियों के अधीन होते हैं, इसलिए हमें कभी अपने पद,ताकत, पैसे का घमंड नहीं करना चाहिए।जब भी कोई जरूरत, पीड़ित, परेशान व्यक्ति सामने आए तो यथाशक्ति उसकी मदद करने का प्रयास करना चाहिए।बेशक आज के समय में जरूरतमंदों की आड़ में फ्राड और बहरुपिए घूमने लगे हैं मगर सतर्कता और सूझबूझ से काम लेंगे तो कभी धोखा नहीं खाएंगे। स्नेह, सम्मान और समानता का व्यवहार करने से ही समाज सशक्त और खूबसूरत बनेगा।
*मीरा सिंह*
*आबकारी उप निरीक्षक*
*इंदौर, मध्यप्रदेश*